सिर्फ एक थप्पड़ ही तो है लेकिन नहीं मार सकता कोई। अनुभव सिन्हा ने दिल निचोड़ कर रख दिया। एक मर्द होते हुए जिन बारीकियों से उन्होंने औरतों की ज़िंदगी को पेश किया है वो क़ाबिले तारीफ है। साथ ही में इस नैरेटिव को भी क्वेश्चन करता है कि सिर्फ औरतें ही एक औरत की जीवनी को पूरी सच्चाई के साथ पेश कर सकती हैं। यह कोई मूवी रिव्यु नहीं है तो इसकी सारी बारीकियों को ना छू पाने के लिए खेद चाहती हूँ। इस लेखनी के ज़रिये मैं अपने दिल में दबें वो हज़ारों सवालों का जवाब ढूंढने की कोशिश कर रही जिसने मुझे अंदर से विचलित कर दिया है। बहुत सी बातें हैं कहने को लेकिन पन्ने शायद कम पड़ जाएं। ऐसा लग ही नहीं रहा था जैसे कोई मूवी चल रही हो। आंखों के सामने हर रोज ऐसी ही ज़िन्दगी जीती हुई हज़ारों लड़कियाँ दिख रही थीं। मूवी शुरू तो होती है अमृता (तापसी पन्नो) से लेकिन हर उस औरत की ज़िंदगी को छू लेती है जो इस पितृसत्तामक समाज में खुद से जद्दोजेहद कर रही हैं। जब मूवी का ट्रेलर देखा तो मुझे भी लगा कि सिर्फ एक थप्पड़ के वज़ह से तलाक़ लेना बहुत बड़ी बात है लेकिन जिन बारीकियों से दिखाया गया इन औरतो...