Skip to main content

अस्तित्व की लड़ाई

जब कभी इंसान किसी मुद्दे पर अपनी राय रखता है तो सबसे पहले उसका विशेषाधिकार आड़े आता है। किसी स्ट्रगल को समझने के लिए सबसे पहले उसके हालात को समझना जरूरी होता है। 

मेरा खुद का अनुभव है कि चाहे हमसब कितना भी दावा क्यों ना कर लें लेकिन प्रिविलेज पोजिसन पर बैठ कर शोषित वर्ग के संघर्ष को नहीं समझ सकते हैं। अमेरिका में जो कुछ भी हो रहा है वो सदियों से चले आ रहे संघर्ष का नतीजा है। मैं ख़ुद किसी भी तरीके के हिंसा में यकीन नहीं रखती हूँ लेकिन हिंसा की वजह क्या है उसे जानना सबसे ज्यादा अहम रखता है। तोड़ फोड़ मचाना ग़लत है लेकिन उससे भी ज्यादा ग़लत है एक इंसान को अपने बल का प्रयोग कर के जान से मार देना। 

जब हर इंसान के खून का रंग एक है फ़िर चाहे वो आदमी हो औरत हो या फ़िर तीसरा जेंडर फ़िर हमें किसने अधिकार दिया उन्हें किसी से कमतर मानने का। लिंग, जाति, धर्म और नस्ल के नाम पर किसी को दबाना, नीचा दिखाना और बराबरी का दर्जा ना देना सिर्फ और सिर्फ पॉवर पॉलिटिक्स और अपर कास्ट प्रिविलेज मेंटेलिटी है और कुछ नहीं। 

जिनका ख़ुद का जीवन ही अस्तित्व की लडाई हो उनके लिए ख़ुद की आवाज़ को किसी भी तरह आवाम तक पहुँचना ही एक आख़िरी मकसद होता है। फ़िर चाहे वो ब्लैक डिस्क्रिमिनेशन इन अमेरिका हो या फ़िर दलित और मुस्लिम विरोध इन इंडिया हो फ़िर चाहे वो वैश्विक अस्तर पर औरतों का तिरस्कार हो। 

To survive is to resist.

Comments

Popular posts from this blog

love jihad

'लव जिहाद' का भूत एक बार फ़िर से भारत को सता रहा है। भारतीय समाज मूल रूप से प्रेम का विरोधी है। एक ऐसा समाज जहां प्रेम के बजाय दहेज को अधिक महत्व दिया जाता है, एक ऐसा समाज जहां महिलाओं को महज उनकी पसंद का साथी चुनने के लिए 'खोखले सम्मान’ के नाम पर मार दिया जाता है, उस समाज से प्रेम और सौहार्द की उम्मीद करना ही बेमानी है।  रविश कुमार ने 'लव जिहाद' के नाम पर चल रहे साजिश को बख़ूबी बेनकाब किया है। इक ऐसा समाज जो सोते जागते हिंदी फ़िल्मों का प्रेम तो गीत सुनता है लेकिन प्रेम से इतना डरता है कि डर का पूरा भूत ही खड़ा कर देता है। उसी भूत का नाम है 'लव जिहाद'। भारतीय समाज में पुरुषों के विजय और औरतों के जीवन पर एकाधिकार का रूप है 'लव जिहाद'। उस समाज की बेवक़्त, सियासी जरूरत है 'लव जिहाद' जिस समाज में आये दिन होने वाले बलात्कार का भूत कभी इजाद नहीं होता और होगा भी कैसे, समाज की कड़वी सच्चाई उजागर हो जाएगी जिसे झूठी मर्दानगी के तले दबा दिया गया है।  मध्यप्रदेश में लव जिहाद ’के संबंध में कानून की हालिया घोषणा उन लोगों के लिए ताबूत में आखिरी कील है, जिनक...

KABIR SINGH

Today I watched Kabir Singh, all alone, for the first time in my life. I am not good at reviewing movies nor I am interested in doing so. But at one point of time, I think it is important to discuss these issues from gender perspective. A director has all the right to make to whatever kind of movies he wants to make yet I would like to point out… One needs to understand that there is a term called ‘media discourse’ which means a way through which a platform communicates with audience. The very first flaw lies in the movie itself is the concept or way of loving someone. You cannot possess someone even if you are madly in love with them. It made me uncomfortable the way the hero kisses on checks of the heroin on the first day they talk without asking if she is comfortable or not. The character of the heroin in this movie is of a shy, timid girl exactly like one most of the boys want their partner to be. This is totally unacceptable how the hero slaps the heroin when things...

Memories of Dad

सच ही कहा है किसी ने ज़िन्दगी तो चलती ही रहती है किसी के साथ होने पर भी और साथ छोड़ कर चले जाने के बाद भी कमी तो हर मोड़ पर रहती है लेकिन उनके होने का एहसास  हर पल रहता है.... वो पल मौत से भी बदतर होता है जब ये एहसास होता है कि उनका होना एक एहसास मात्र है वास्तव में तो वो थें ही नहीं हम उन्हें सिर्फ महसूस कर सकते हैं ज़िन्दगी में बहुत लोग आते हैं  लेकिन ना ही कोई उस ज़ख्म को भर सकता है और नाहीं कोई उस दर्द को कम कर सकता है.... कुछ दाग़ मरने के बाद हीं जाते हैं लेकिन वो उस पल का एहसास  हर वक़्त दिला जाते हैं और ये दाग़ ऐसे होते हैं  जो दिखते भी नहीं और छुपते भी नहीं ||||